Good Evening
18:23 pm

NCERT Solutions for Class 10 Hindi क्षितिज भाग २ Chapter 2 तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
  • NCERT Solution For Class 10 Hindi क्षितिज भाग २

    तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Here is the CBSE Hindi Chapter 2 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Hindi तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Chapter 2 NCERT Solutions for Class 10 Hindi तुलसीदास - राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Chapter 2 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2023-24. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN100018876

    निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए [2 × 4 = 8]
    (क) लक्ष्मण ने धनुष टूटने के किन कारणों की संभावना व्यक्त करते हुए राम को निर्दोष बताया?
    (ख) फागुन में ऐसी क्या बात थी कि कवि की आँख हट नहीं रही है?
    (ग) फसल क्या है? इसको लेकर फसल के बारे में कवि ने क्या-क्या संभावनाएँ व्यक्त की हैं?
    (घ) ‘कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन’ क्यों कहा गया है?
    (ङ) संगतकार किसे कहा जाता है? उसकी भूमिका क्या होती

    Solution

    (क) लक्ष्मण ने धनुष टूटने के कई कारण बताते हुए राम को निर्दोष बताया।

    1. धनुष अत्यंत जीर्ण था जो राम के हाथ लगाते ही टूट गया।
    2. हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान हैं इस धनुष के टूटने से हमारा क्या लाभ या हानि होगी।
    3. राम ने तो इसे नया समझकर छुआ ही था, छूने भर से ही ये टूट गया।

    (ख) फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपनी चरम सीमा पर व्याप्त होता है। फागुन में बसंत का यौवन और सुंदरता कवि की आँखों में समा नहीं पा रहा है। उसका हृदय प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत है। इस कारण कवि की आँख प्रकृति के सौंदर्य से हट नहीं पा रही है।

    (ग) फसले नदियों के पानी का जादू, मिट्टियों का गुण धर्म, मानव श्रम धूप और हवी का मिला-जुला रूप है। सभी प्राकृतिक उपादानों और मानव श्रम का परिणाम है। फसल को लेकर कवि ने संभावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा है कि मनुष्य यदि परिश्रम करे और प्राकृतिक उपादनों को सही उपयोग करे तो देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। किसानों की स्थिति में सुधार आएगा और कृषि व्यवस्था सदृढ़ होगी।

    (घ) कन्यादान कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन इसलिए कहा गया है क्योंकि स्त्रियाँ सुंदर वस्त्र व सुंदर आभूषणों के चमक वे लालच में भ्रमित होकर आसानी से अपनी आजादी खो देती हैं। और मानसिक रूप से हर बंधन स्वीकारते हुए जुल्मों का शिकार होती हैं।

    (ङ) किसी भी क्षेत्र या कार्य में मुख्य कलाकार का सहयोग करने वाले सहायकों को संगतकार कहा जाता है। संगताकर की भूमिका यह होती है कि वह अपने मुख्य कलाकार को पूर्ण सहयोग प्रदान करता ह और उन्हें आगे बढ़ने में योगदान देता है। जैसे संगीत के क्षेत्र में संगतकार मुख्य गायक की आवाज को बिखरने नहीं देता है साथ ही अपनी आवाज को प्रभावी नहीं बनने देता है।

    Question 27
    CBSEENHN10002030
    Question 28
    CBSEENHN10002031

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में निहित भाव से स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 29
    CBSEENHN10002032

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम को ‘नाथ’ कह कर किस ने अपनी बात कही थी?

    Easy
    Question 30
    CBSEENHN10002033

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम का स्वभाव कैसा था?

    Easy
    Question 31
    CBSEENHN10002034

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    शिव धनुष को तोड़ने वाले को परशुराम ने शत्रु माना था?

    Easy
    Question 32
    CBSEENHN10002035

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम ने क्या धमकी दी थी?


    Easy
    Question 33
    CBSEENHN10002036

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम के वचनों को सुनकर लक्ष्मण के चेहरे पर कैसे भाव प्रकट हुए थे?



    Easy
    Question 34
    CBSEENHN10002037

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    लक्ष्मण ने शिव धनुष को क्या कहा था?


    Easy
    Question 35
    CBSEENHN10002038

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    लक्ष्मण की किस बात को सुन कर परशुराम को अधिक क्रोध आया था?


    Easy
    Question 36
    CBSEENHN10002039

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम के अनुसार लक्ष्मण किस के बस में हो कर बोल रहा था?

    Easy
    Question 37
    CBSEENHN10002040

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    परशुराम ने राम के बचनों का उत्तर कैसे दिया?

    Easy
    Question 38
    CBSEENHN10002041

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    कवि के कथन को नाटकीयता किसने प्रदान की है?

    Easy
    Question 39
    CBSEENHN10002042

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    किस तत्त्व ने पद को स्वाभाविकता का गुण प्रदान किया है?

    Easy
    Question 40
    CBSEENHN10002043

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में किस काव्य गुण की प्रधानता है?

    Easy
    Question 41
    CBSEENHN10002044

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 42
    CBSEENHN10002045

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    थन को संगीतात्मकता का गुण कैसे प्राप्त हुआ है?

    Easy
    Question 43
    CBSEENHN10002046

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 44
    CBSEENHN10002047

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?

    Easy
    Question 45
    CBSEENHN10002048

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 46
    CBSEENHN10002049

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    शिव और परशुराम के पद से दो-दो पर्यायवाची छाँटिए।

    Easy
    Question 47
    CBSEENHN10002050

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    नाथ संभुधनु  भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
    आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
    सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
    सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।।
    सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।
    सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
    बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं।।
    येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
         रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।।
        धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

    पद में प्रयुक्त अलंकारों से चुन कर लिखिए।

    Easy
    Question 48
    CBSEENHN10002051
    Question 49
    CBSEENHN10002052

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 50
    CBSEENHN10002053

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    लक्ष्मण सभी धनुषों को कैसा मानते थे?
     

    Easy
    Question 51
    CBSEENHN10002054

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    राम ने धनुष को किस धोखे से छू लिया था?

    Easy
    Question 52
    CBSEENHN10002055

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    लक्ष्मण के अनुसार धनुष तोड़ने में राम का कोई दोष क्यों नहीं था?

    Easy
    Question 53
    CBSEENHN10002056

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    परशुराम लक्ष्मण का वध क्यों नहीं कर रहा था?

    Easy
    Question 54
    CBSEENHN10002057

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

    परशुराम विश्व भर में अपने किन गुणों के कारण बिख्यात था?

    Easy
    Question 55
    CBSEENHN10002058

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    परशुराम ने अपनी भुजाओं के बल से क्या किया था?

    Easy
    Question 56
    CBSEENHN10002059

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    परशुराम ने धमकाते हुए लक्ष्मण को क्या देखने के लिए कहा था?

    Easy
    Question 57
    CBSEENHN10002060

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    परशुराम का फरसा क्या कर सकने की योग्यता रखता था?

    Easy
    Question 58
    CBSEENHN10002061

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद में परशुराम के परिचय को स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 59
    CBSEENHN10002062

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद की भाषा कौन-सी है?

    Easy
    Question 60
    CBSEENHN10002063

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 61
    CBSEENHN10002064

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    गेयता के गुण का आधार क्या है?

    Easy
    Question 62
    CBSEENHN10002065

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    किस काव्य-रस की प्रधानता है?

    Easy
    Question 63
    CBSEENHN10002066

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    इस पद को किस मूल ग्रंथ से लिया जाता है?

    Easy
    Question 64
    CBSEENHN10002067

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    किस काव्य-गुण का प्रयोग किया जाता है?

    Easy
    Question 65
    CBSEENHN10002068

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    किस प्रकार की शब्दावली की पद में प्रधानता है?

    Easy
    Question 66
    CBSEENHN10002069

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद से दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 67
    CBSEENHN10002070

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    लक्ष्मण की शब्दावली में किन विशेषताओं की प्रमुखता है?

    Easy
    Question 68
    CBSEENHN10002071

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद से दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 69
    CBSEENHN10002072

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    पद से दो तत्सम शब्द छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 70
    CBSEENHN10002073

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
    का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
    छुअत टूट रघुंतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
    बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।
    बालकु बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
    बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
    भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
    सहसबाहुभुज छेदनिहारा।। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
    मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीपकिसोर।
    गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु र अति घोर।।

    प्रयुक्त अलंकारों को छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 71
    CBSEENHN10002074

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।

         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    Easy
    Question 72
    CBSEENHN10002075

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 73
    CBSEENHN10002076

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    रशुराम बार-बार अपना कुल्हाड़ा किसे दिखा रहे थे?

    Easy
    Question 74
    CBSEENHN10002077

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    कवि के द्वारा प्रयुक्त काव्य रूढ़ि और समाज में चली आने वाली मान्यता को स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 75
    CBSEENHN10002078

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने परशुराम से अभिमानपूर्वक बात क्यों की थी?

    Easy
    Question 76
    CBSEENHN10002079

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने अपना गुस्सा रोक कर परशुराम से बात क्यों की थी?

    Easy
    Question 77
    CBSEENHN10002080

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    रघुकुल के लोग किन-किन पर दया करते थे?

    Easy
    Question 78
    CBSEENHN10002081

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    सूर्यवंशी जिन पर दया करते थे, उन्हें क्यों नहीं मारना चाहते थे?

    Easy
    Question 79
    CBSEENHN10002082

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने परशुराम को मारने की अपेक्षा क्या करने की बात कही थी?

    Easy
    Question 80
    CBSEENHN10002083

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण ने अपने द्वारा मुनि को अनुचित शब्द कहने के बाद उन से क्या मांगा था?

    Easy
    Question 81
    CBSEENHN10002084

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण के क्रोध-भाव को प्रतिपादित कीजिए।

    Easy
    Question 82
    CBSEENHN10002085

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    कवि के द्वारा किस भाषा का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 83
    CBSEENHN10002086

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    कवि ने किन शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 84
    CBSEENHN10002087

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस काव्य-रस की प्रधानता है?

    Easy
    Question 85
    CBSEENHN10002088

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस काव्य-गुण का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 86
    CBSEENHN10002089

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किन छंदों का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 87
    CBSEENHN10002090

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस प्रयोग ने संगीतात्मकता की सृष्टि की है?
     

    Easy
    Question 88
    CBSEENHN10002091

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    किस शब्द शक्ति का प्रयोग किया गया है?
     

    Easy
    Question 89
    CBSEENHN10002092

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    काव्यांश में प्रयुक्त दो तदभव शब्दों को छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 90
    CBSEENHN10002093

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    लक्ष्मण की भाषा में किस की प्रधानता है?

    Easy
    Question 91
    CBSEENHN10002094

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
    पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फूँकि पंहारू।।
    इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मीर जाहीं।।
    देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
    भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
    सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।
    बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
    कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
         जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर। 
         सुनि सरोष भृगुबंसमीन बोले गिरा गंभीर।।

    काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 92
    CBSEENHN10002095

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    Easy
    Question 93
    CBSEENHN10002096

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    तुलसीदास ने लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव के किन गुणों/अवगुणों को प्रकट किया है?

    Easy
    Question 94
    CBSEENHN10002097

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 95
    CBSEENHN10002098

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस प्रकार के शब्दों की अधिकता है?

    Easy
    Question 96
    CBSEENHN10002099

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 97
    CBSEENHN10002100

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 98
    CBSEENHN10002101

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस काव्य-गुण की प्रधानता है?

    Easy
    Question 99
    CBSEENHN10002102

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    किस शब्द-शक्ति का अधिकता से प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 100
    CBSEENHN10002103

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    सवांदो से कथन को कौन-सा गुण प्राप्त हुआ है?

    Easy
    Question 101
    CBSEENHN10002104

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    ‘वीर व्रती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?

    Easy
    Question 102
    CBSEENHN10002105

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    ‘वीर व्रती’ शब्द में कैसा भाव छिपा हुआ है?

    Easy
    Question 103
    CBSEENHN10002106

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम की बाणी में कौन-सा भाव प्रमुख है?

    Easy
    Question 104
    CBSEENHN10002107

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 105
    CBSEENHN10002108

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।


    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 106
    CBSEENHN10002109

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम ने लक्ष्मण को बचाने के लिए किसे संबोधित किया?

    Easy
    Question 107
    CBSEENHN10002110

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम के अनुसार लक्ष्मण की विशेषताएं कौन-कौन सी थीं?

    Easy
    Question 108
    CBSEENHN10002111

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम ने अपने कौन-कौन से गुण विश्वामित्र के दूबारा लक्ष्मण को बताने के लिए कहा था?

    Easy
    Question 109
    CBSEENHN10002112

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम को क्या सुझाव दिया था?

    Easy
    Question 110
    CBSEENHN10002113

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम राज सभा में अपनी विशेषताएं पहले कितनी बार बता चुका था?

    Easy
    Question 111
    CBSEENHN10002114

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    परशुराम क्या रोककर अधिक दु:ख सह रहा था?

    Easy
    Question 112
    CBSEENHN10002115

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम को किन-किन विशेषताओं का स्वामी माना था?

    Easy
    Question 113
    CBSEENHN10002116

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    कोई भी शूरवीर क्या न करके अपनी वीरता का परिचय किस प्रकार देता है?

    Easy
    Question 114
    CBSEENHN10002117

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
    भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
    कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।।
    तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
    लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।
    अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
    नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
    बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।
    सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
    विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।

    लक्ष्मण की किस बात पर परशुराम नाराज थे?

    Easy
    Question 115
    CBSEENHN10002118
    Question 116
    CBSEENHN10002119

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    पद में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।



    Easy
    Question 117
    CBSEENHN10002120

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    रशुराम लक्ष्मण की मृत्यु के लिए काल को किस प्रकार याद कर रहे थे?



    Easy
    Question 118
    CBSEENHN10002121

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    लक्ष्मण के कड़वे शब्दों को सुनकर परशुराम ने क्या किया था?

    Easy
    Question 119
    CBSEENHN10002122

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    परशुराम ने अब तक लक्ष्मण का वध क्यों नहीं किया था?

    Easy
    Question 121
    CBSEENHN10002124

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    परशुराम ने लक्ष्मण को गुरु द्रोही क्यों कहा था?

    Easy
    Question 122
    CBSEENHN10002125

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    परशुराम ने अपने किन गुणों को बताया था?

    Easy
    Question 123
    CBSEENHN10002126

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    विश्वामित्र के किस गुण के कारण परशुराम अभी तक लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहा था?

    Easy
    Question 124
    CBSEENHN10002127

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    विश्वामित्र ने अपने आप से क्या कहा था?

    Easy
    Question 125
    CBSEENHN10002128

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    पद में विश्वामित्र किस बात पर हंसे थे?

    Easy
    Question 126
    CBSEENHN10002129

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    तुलसीदास ने किस-किस के स्वभाव का सटीक वर्णन किया है?

    Easy
    Question 127
    CBSEENHN10002130

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    नाटकीयता की सृष्टि किस कारण हुई है?

    Easy
    Question 128
    CBSEENHN10002131

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 129
    CBSEENHN10002132

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    कवि ने प्रमुख रूप से किस-किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 130
    CBSEENHN10002133

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    किस काव्य गुण की अधिकता दिखाई देती है?

    Easy
    Question 131
    CBSEENHN10002134

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    किस काव्य -रस का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 132
    CBSEENHN10002135

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    अवतरण में लयात्मकता की सृष्टि किस कारण हुई है?

    Easy
    Question 133
    CBSEENHN10002136

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    किस छंद का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 134
    CBSEENHN10002137

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    दो तद्‌भव शब्द लिखिए।

    Easy
    Question 135
    CBSEENHN10002138

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    तुम्ह तौ कालु हॉक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
    सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
    अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
    बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
    कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
    खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
    उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
    न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।

    गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
    अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

    इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।

    Easy
    Question 136
    CBSEENHN10002139
    Question 137
    CBSEENHN10002140

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 138
    CBSEENHN10002141

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम से क्या कहा?

    Easy
    Question 139
    CBSEENHN10002142

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम के सिर पर किस का ऋण शेष था?

    Easy
    Question 140
    CBSEENHN10002143

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?

    Easy
    Question 141
    CBSEENHN10002144

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए परशुराम से किस को बुलाने के लिए कहा था?

    Easy
    Question 142
    CBSEENHN10002145

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सारी राजसभा क्या और क्यों पुकारने लगी थी?

    Easy
    Question 143
    CBSEENHN10002146

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण परशुराम को क्यों बचा रहा था?

    Easy
    Question 144
    CBSEENHN10002147

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?

    Easy
    Question 145
    CBSEENHN10002148

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?

    Easy
    Question 146
    CBSEENHN10002149

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Easy
    Question 147
    CBSEENHN10002150

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Easy
    Question 148
    CBSEENHN10002151

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    नृपदोही किसे कहा गया है और किस लिए?


    Easy
    Question 149
    CBSEENHN10002152

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों के प्रति क्या प्रतिक्रिया की थी?

    Easy
    Question 150
    CBSEENHN10002153

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 151
    CBSEENHN10002154

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 152
    CBSEENHN10002155

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 153
    CBSEENHN10002156

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग है?

    Easy
    Question 154
    CBSEENHN10002157

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-गुण की प्रधानता है?

    Easy
    Question 155
    CBSEENHN10002158

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने लयात्मकता की सृष्टि कैसे की है?


    Easy
    Question 156
    CBSEENHN10002159

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है।


    Easy
    Question 157
    CBSEENHN10002160

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कोई दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 158
    CBSEENHN10002161

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    संवादों के कारण कौन-सा भाव विशेषता आ गई है?

    Easy
    Question 159
    CBSEENHN10002162

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    Easy
    Question 160
    CBSEENHN10002163

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    पद में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

    Easy
    Question 161
    CBSEENHN10002164

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने परशुराम से क्या कहा?

    Easy
    Question 162
    CBSEENHN10002165

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम के सिर पर किस का ऋण शेष था?

    Easy
    Question 163
    CBSEENHN10002166

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    परशुराम की चिंता अभी शेष क्यों थी?

    Easy
    Question 164
    CBSEENHN10002167

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण ने ऋण चुकाने के लिए परशुराम से किस को बुलाने के लिए कहा था?

    Easy
    Question 165
    CBSEENHN10002168

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सारी राजसभा क्या और क्यों पुकारने लगी थी?

    Easy
    Question 166
    CBSEENHN10002169

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण परशुराम को क्यों बचा रहा था?

    Easy
    Question 167
    CBSEENHN10002170

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    राम ने लक्ष्मण को बोलने से किस प्रकार रोका था?

    Easy
    Question 168
    CBSEENHN10002171

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्द परशुराम के लिए कैसे थे?

    Easy
    Question 169
    CBSEENHN10002172

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Easy
    Question 170
    CBSEENHN10002173

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस अवतरण के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।

    Easy
    Question 171
    CBSEENHN10002174

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    नृपदोही किसे कहा गया है और किस लिए?

    Easy
    Question 172
    CBSEENHN10002175

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    सभा में उपस्थित लोगों ने लक्ष्मण की कठोर और व्यंग्यपूर्ण बातों के प्रति क्या प्रतिक्रिया की थी?

    Easy
    Question 173
    CBSEENHN10002176

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 174
    CBSEENHN10002177

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया गया है?

    Easy
    Question 175
    CBSEENHN10002178

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने किन छंदों का प्रयोग किया है?

    Easy
    Question 176
    CBSEENHN10002179

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-रस का प्रयोग है?

    Easy
    Question 177
    CBSEENHN10002180

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    किस काव्य-गुण की प्रधानता है?

    Easy
    Question 178
    CBSEENHN10002181

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कवि ने लयात्मकता की सृष्टि कैसे की है?

    Easy
    Question 179
    CBSEENHN10002182

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है।

    Easy
    Question 180
    CBSEENHN10002183

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    लक्ष्मण के शब्दों में कौन-सी शब्द-शक्ति विद्यमान है।

    Easy
    Question 181
    CBSEENHN10002184

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    कोई दो तद्‌भव शब्द छाँट कर लिखिए।

    Easy
    Question 182
    CBSEENHN10002185

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    संवादों के कारण कौन-सा भाव विशेषता आ गई है?

    Easy
    Question 183
    CBSEENHN10002186

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    ‘द्‌विजदेवता’ में कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?

    Easy
    Question 184
    CBSEENHN10002187

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    दो तत्सम शब्द लिखिए।

    Easy
    Question 185
    CBSEENHN10002188

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
    कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
    माता पितहि उरिन भय नीकें। गुर रिनु रहा सोचु बड़ जी कें।।
    सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढां।।
    अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देऊँ मैं थैली खोली।।
    सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।
    भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र विचारि बचौं नृपद्रोही।।
    मिले ने कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
    अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
            लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोप कृसानु।
            बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

    इस काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार लिखिए।

    Easy